विद्यु
विधुत आवेश
विधुत आवेश के प्रवाह की दर को विधुत धरा कहते है इसे द्वारा (I) व्युक्त करते है |
विद्युत धारा (I) = आवेश(Q) / समय (t)
I=Q/T
यह एक अदिश शशि है | इसका मात्रक एम्पेयर होता है | इसको अंग्रेज़ी के अक्षर (I) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है विद्युत धारा को मापने के लिए एमीटर का उपयोग किया जाता है | विद्युत धारा को मापने के लिए एमीटर को हमेशा परिपथ में श्रेड़ीक्रम में जोड़ा जाता है | विद्युत धारा की S.I Unit (A)
एम्पेयर
जब 1c आवेश IS के लिए प्रवहा करते है तो विधुत धारा IA की रचना होती है
1A =1C/1S
किसी भी विद्युत परिपथ में विद्युत धारा इलेक्ट्रॉन के प्रवाह की विपरीत दिशा में बहती है अर्थात बैटरी या सेल के घनात्मक टर्मिनल से त्रउणत्मक टर्मिनल की तरफ
वाल्ट
किसी विधुत धारावाही चालक के दो बिन्दुओ के बीच 1 कलाय आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में 1 जुल कार्य किया जाता है तो उन दो बिन्दुओ के बीच विभवान्तर 1 वाल्ट होता है
वाल्टमीटर
वाल्टमीटर इसके द्वारा विभवान्तर को मापा जाता है
विधुत परिपात में परशकर्म में संयोजित किया जाता है क्यूंकि इसका प्रतिरोध अधिक है
आवेग
यह बहुत छोटा कण है जो परमाणु में पाया जाता है यह इलेक्ट्रान या प्रोटोन हो सकता है अगर इलेक्ट्रान है तो त्राणत्मक आवेग और अगर प्रोटोन है तब घनात्मक आवेग होगा |
इलेक्ट्रिसिटी आने की विद्युत एक प्रकार की ऊर्जा है जैसा कि आप जानते ही हैं कि ऊर्जा संरक्षण के नियम अनुसार हम ऊर्जा को ना तो उत्पन्न कर सकते हैं और ना ही नष्ट कर सकते हैं ऊर्जा को केवल एक ही रूप में से दूसरे रूप में बदला जा सकता है विद्युत भी एक प्रकार की ऊर्जा है जैसा हम किसी ऊर्जा को रूपांतर करके प्राप्त करते हैं इलेक्ट्रिसिटी आने की विधि प्रकार की ओर जैसा कि आप जानते हैं |
आवेश के प्रवाह को विद्युत धारा कहते हैं। ठोस चालकों में आवेश का प्रवाह इलेक्ट्रॉनों के एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरण के कारण होता है। जबकि द्रवों जैसे- अम्लों, क्षारों व लवणों के जलीय विलयनों तथा गैसों में यह प्रवाह आयनों की गति के कारण होता है। यदि किसी परिपथ में धारा एक ही दिशा में बहती है तो उसे दिष्टï धारा (Direct current) कहते हैं तथा यदि धारा की दिशा लगातार बदलती रहती है तो उसे ‘प्रत्यावर्ती धारा’ (alternating current) कहते हैं।
जब आवेश किसी तार या चालक पदार्थ में बहता है तो उसे धारा विद्युत (current electricity) कहते हैं। आवेश दो प्रकार के – धनात्मक आवेश (+ve charge) व ऋणात्मक आवेश (-ve charge) होते हैं।
विद्युत दो प्रकार के होते हैं Electricity
- स्थिर विद्युत
- गतिशील विद्युत
स्थिर विद्युत
स्थिर विद्युत की खोज थेल्स नामक वैज्ञानिक ने की थी स्थिर विद्युत आवेश के रूप में होती है और इससे अधिक मात्रा में उत्पन्न नहीं कर सकते है इसलिए इसे 1 जगह से दूसरी जगह नहीं पहुँचा सकते हैं इसका कोई भी व्यापारिक प्रयोग नहीं होता है सामान्यता यह विरोध के लिए 2 पदार्थ युगलों को आपस में रगड़ कर प्राप्त की जा सकती है जैसे कांच की छड़ को रेशम से रगड़ने से आदि
गतिशील विद्युतीय (Dynamic Electricity)
- AC प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current)
- DC दिष्ट धारा (Direct Current)
AC प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current)
इस विद्युत को करंट इलेक्ट्रिसिटी भी कहा जाता है इस विद्युत का उत्पादन बहूत अधिक मात्रा में किया जा सकता है और इसे तारों (WIRE) की सहायता 1 जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जा सकता है यह विद्युत हमारे दैनिक जीवन में बहुत काम आती है इसी गतिशील विद्युत से आप अपने घरों में लाइट चला सकती तलाब आते हैं पंखा चला पाते हैं और हमारे सभी बिजली से चलने वाले उपकरण गतिशील विद्युत से ही प्रचिलित होते हैं यह विद्युत हमें ऊर्जा का रूपांतरण करने वाले साधनों से प्राप्त की जा सकती है
DC दिष्ट धारा (Direct Current)
वह करण जिसकी प्रवाह हिसाब तथा मान बदलता नहीं निर्यात प्रदाता DC करंट कहलाती है किसी भी तरह की धारा अब पूर्ण परिपथ में मान व दिशा निर्यात रहने के कारण इसका उपयोग बहुत से ऐसे कार्यों में किया जाता है जहाँ हम AC प्रकार के वधूत धारा का उपयोग नहीं कर सकते हैं
वैसे तो DC मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है लेकिन DC
DC धारा विद्युतीय क्षेत्र के बोहोतसे कामो के लिए उसे यूज़ किया जाता हैं
जैसे :- बैटरी चार्जिंग, Car Battery, आर वेल्डिंग इलेक्ट्रॉनिक्स आदि में किया जाता है
ओम का नियम क्या है? किसे कहते है! What is ohm’s law in hindi
सन् 1826 में जर्मन वैज्ञानिक डॉ. जार्ज साइमन ओम (George Simon Ohm) ने किसी चालक के सिरों पर लगाये गये विभवान्तर तथा उसमें प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा का सम्बन्ध को एक नियम से व्यक्त किया जिसे ओम का नियम (Om ka Niyam) कहते है।
इस नियम के अनुसार “यदि किसी चालक की भौतिक अवस्था (जैसे ताप, लम्बाई, क्षेत्रफल आदि) अपरिवर्तित रखी जाये तब उसके सिरों पर लगाये गये विभवान्तर तथा उसमें प्रवाहित होने वाली धारा का अनुपात नियत रहता हैं। अर्थात् यदि चालक के सिरों पर V विभवान्तर लगाने पर उसमें । धारा बहे तो ओम के नियम (ohm’s law in hindi) से
V/I = नियतांक
ओम के नियम की परिभाषा (Definition of ohm’s law) :-
यदि किसी चालक की भौतिक अवस्थाएं जैसे ताप, दाब, लंबाई, क्षेत्रफल आदि स्थिर रहता है तो उसके सिरों के मध्य उत्पन्न विभवान्तर प्रवाहित विद्युत धारा के समानुपाती होता है।
ओम का नियम का सूत्र (समीकरण) :-
ओम का मात्रक (Unit) :-
एक ओम की परिभाषा :-
यदि किसी चालक तार में एक एम्पियर की धारा प्रवाहित होती करने पर उसके दोनो सिरो के मध्य एक वोल्ट विभवान्तर उत्पन्न होता है, जिसे एक ओम कहते है।
i) ओमीय प्रतिरोध (Ohmic Resistance)-
वे प्रतिरोध जो ओम के नियम का पालन करते है अर्थात् जिनके लिए Y का मान नियत रहता है,
ओमीय प्रतिरोध कहलाते हैं।
इनके लिए V-I ग्राफ एक सरल धातु रेखा होती है। सभी धात्वीय चालक कम विभवान्तर के लिए ओमीय होते हैं।
(ii) अन-ओमीय प्रतिरोध (Non-Ohmic Resistance)-
वे प्रतिरोध जो ओम के नियम का पालन नहीं करते हैं अर्थात् जिनके लिए V-I ग्राफ सरल रेखा न होकर वक्र रेखा होती है, अन-ओमीय प्रतिरोध कहलाते हैं।
यहाँ कुछ स्थितियाँ दी जा रही है जिनमे om ka niyam पालन नहीं होता हैं :-
(a) विभवान्तर के साथ धारा में परिवर्तन अरैखिक (Non-Liner) हो :-
धात्वीय चालक केवल तभी ओमिय रहते है जब तक उनमें कम धारा बहती हैं। अर्थात जब तक उनके सिरों पर कम विभवान्तर लगाया जाता है।
अधिक विभवान्तर लगाने पर उनका व्यवहार ओमीय नहीं रहता क्योंकि अधिक धारा बहने पर चालक गर्म होते है और गर्म होने पर प्रतिरोध बढ़ जाता है।
कहने का मतलब है की उच्च धाराओं के लिए धात्विक चालक भी ओमीय नहीं रहते है।
(b) विभवान्तर के साथ धारा में परिवर्तन विभवान्तर के चिन्ह पर निर्भर करता है :-
इस स्थिति में विभवान्तर V के लिए धारा का मान I होता है तो V का मान स्थिर रख कर इसकी दिशा परिवर्तित करने पर विपरीत दिशा में I के समान मान की धारा प्रवाहित नही होती है।
उदाहरण जब P-N संधि डायोड अग्र अभिनत होता है तो V व I के मध्य खींचा गया ग्राफ OAB तथा जब उत्क्रम अभिनत होता है तो OCD प्राप्त होता है।