विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव
ओर्स्टेड
ओर्स्टेड का प्रयोग क्या है? तथा इसकी खोज किसने की थी
चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण
- चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं चुंबक के उत्तर द्रवों से प्रकट होती है तथा दक्षिण द्रवों पर विलीन होती है|
- चुम्बक के भीतर ये रेखाएं दक्षिण द्रवों से उतर द्रवों की ओर जाती हैं अता चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं एक बंद वक़्त होती हैं|
जहाँ चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं अधिक निकट होती है वह चुम्बकीये क्षेत्र प्रबल होगा और निकटता कम होगी वही चुम्बकीये क्षेत्र दुर्लभ होता है|- दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ कहीं भी एक दूसरे को प्रतिछेद नहीं करती अगर वे ऐसा करें तो प्रति छेद बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ होंगी जो की असंभव है |
दक्षिण हस्त अंगूठा नियम
परिनालिका
परिनालिका पास पास लिपटे विधतरोधी तांबे के तार की बेलन की आकर्ति की अनेक फेरो वाली कुंडली को परिनालिका कहते है|
- वास्तव में परिनालिका का एक शिरा उतर ध्रुव तथा दूसरा शिरा दक्षिण धुर्व की भांति व्यवहार करेगा |\
- परिनालिका के अंदर एकसामान चुम्बकीये क्षेत्र होता है
विधुत चुम्बक
परीनालीका के भीतर उत्पादन प्रबल चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग किसी चुम्बकीये पदार्थ जैसे नार्म लोहे को परिनालिका के भीतर रखकर चुम्बक बनाने में किया जा सकता है| इस प्रकार चुम्बक को विधुत चुम्बक कहते हैं|
चुंबकीय क्षेत्र की दिशा
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परिनालिका के बाहर -उत्तर से दक्षिण
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परिनालिका के अंदर -दक्षिण से उत्तर
चुंबकीय क्षेत्र में किसी विधुत धारावाहिक चालक पर बल
अन्द्रो मैरी एम्पीयर ने प्रस्तुत किया की चुम्बक भी किसी विधुत धारावाहिक चालक पर परिणाम में सामान परंतु दिशा में विपरीत बल आरोपित करती है|चालक में विस्थापन उस समय अधिकतम होता है जब विधुत धारा की दिशा बदलने पर बल की दिशा भी बदल जाती है|
प्लैनिंग का वाम हस्थ (बायें हाथ) नियम
अपने हाथ की तर्जनी ,मध्यम तथा अंगूठे को इस प्रकार फैलाइये की ये तीनो एक दूसरे के परस्पर लम्बवत हो यदि तर्जनी ऊँगली चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और मादक ऊँगली चालक में प्रवाहित दिशा की ओर संकेत करती है तो अंगूठा चालक की गति की दिशा की और संकेत करती है | या बल्कि दिशा की ओर संकेत करेगा |
मानव शरीर के हिर्दय और मस्तिक मैं चुंबकीय क्षेत्र होता
गलवानोमेटेर:- ग्लोवॉनॉमेटेर एक किसी युक्त है जो परिपथ में विधुत धारा की उपस्थिति संसूचित करता है| यह धारा की दिशा को भी संयोजित करता है|
विधुत चुंबकीय प्रेरण:- जब किसी चालक को परिवर्तित चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो चालक मैं विरुद्ध धारा प्रेरित होती है यह धारा प्रेरित विरुद्ध धारा कहलाती है
फ्लेमिंग का दक्षिणहस्त नियम
क्षिणहस्त नियम’ (The Right Hand Thumb Rule) जिसे ‘मैक्सवेल का कॉर्कस्क्रू रूल’ (Maxwell’s Corkscrew Rule) भी कहते हैं, का प्रयोग प्रत्यक्ष सुचालक (Straight Conductor) के माध्यम से विद्युत धारा प्रवाह की दिशा के संबंध में चुंबकीय क्षेत्र की दिशा निर्धारित करने के लिए किया जाता है। जैसे ही विद्युत धारा की दिशा बदलती है, चुंबकीय क्षेत्र की दिशा भी उलट जाती है। लंबवत निलंबित विद्युत धारावाही सुचालक (Vertically Suspended Current Carrying Conductor) में विद्युत धारा की दिशा अगर दक्षिण से उत्तर है, तो उसका चुंबकीय क्षेत्र वामावर्त दिशा में होगा। अगर विद्युत धारा का प्रवाह उत्तर से दक्षिण की ओर है, तो चुंबकीय क्षेत्र की दिशा दक्षिणावर्त होगी। अगर विद्युत धारा सुचालक को अंगूठे को सीधा रखते हुए दाएँ हाथ से पकड़ा जाए और अगर विद्युत धारा की दिशा अंगूठे की दिशा में हो, तो अन्य उँगलियों को मुड़ने की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा बताएगी। चुंबकीय क्षेत्र का परिमाण कुंडली (Coil) के घुमावों की संख्या के समानुपातिक होता है। अगर कुंडली में ‘n’ घुमाव हैं, तो कुंडल के एकल मोड की स्थिति में चुंबकीय क्षेत्र का परिमाण चुंबकीय क्षेत्र का ‘n’ गुना होगा।
अगर सुचालक गोलाकार लूप में है तो लूप चुंबक की तरह व्यवहार करता है। विद्युत धारावाही गोलाकार सुचालक में, केंद्रीय क्षेत्र के मुकाबले सुचालक की परिधि के पास चुंबकीय क्षेत्र अधिक मजबूत होता है।
विद्युत धारावाही गोलाकार आकार का लूप सुचालक
जैसा कि मैरी एम्पीयर ने सुझाव दिया है, विद्युत धारावाही सुचालक के आसपास जब चुंबक रखा जाता है तो वह बल को अपनी तरफ खींचता है। इसी तरह चुंबक भी विद्युत धारावाही सुचालक पर समान और विपरीत बल लगाता है। विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा में परिवर्तन के साथ सुचालक पर लगने वाले बल की दिशा बदल जाती है। यह देखा गया है कि जब विद्युत धारा की दिशा चुंबकीय क्षेत्र से समकोण पर हो तो बल का परिमाण सबसे अधिक होता है। अगर विद्युत धारा विद्युत सर्किट में दक्षिण से उत्तर दिशा में प्रवाहित हो रही हो और सुचालक तार पर चुंबकीय कंपास रखा जाए, तो कंपास की सूई पश्चिम दिशा में विक्षेपित होगी। यह ‘स्नो नियम’ (SNOW Rule) के नाम से जाना जाता है जो चुंबकीय क्षेत्र की दिशा की भविष्यवाणी करने में मदद करता है।
प्रत्यावर्ती धारा
प्रत्यावर्ती धारा जो विधुत धारा समान समय अंतरालों के पश्चात अपनी दिशा परिवर्तित क्र लेती है|
भारत में विधुत धरा हर 1/100 सेकंड के बाद अपनी दिशा उत्क्रृत क्र लेती है|
- लाभ:- प्रत्यावर्ती धारा को सुदूर स्थानों पर बिना अधिक ऊर्जा छेय के प्रेषित किया जा सकता है|
- हानि:- प्रतिवर्ती धारा को संचित नहीं किया जा सकता |
दिष्ट धारा
- जो अपनी विधुत धारा दिशा परिवर्तित नहीं करती दिष्ट धारा
- दिष्ट धारा को संचित कर सकते है|
- सुदूर स्थानों पर प्रेषित करने में ऊर्जा का झय ज्यादा होता है|
लघुपथन लघुपथन जब अकस्मात विधुनी तार व उदासीन तार दोनों सीधे सम्पर्क में एते है तो परिपथ में प्रतिरोध कम हो जाता है अतिभरण हो जाता है
अतिभरण जब विधुत तार की झमता से ज्यादा विधुत धारा खींची जाती है | तो यह अतिभरण पैदा करते है|